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माँ जब तुझे छोड़, मैं शहर आया, मेरी सारी घमंड चकनाचूर हो गई। गुस्सा जो सदा मेरे नाक पर थी, ना‌ जाने कितने कोश दूर हो गई। जो कभी अपने हाथों से खाना नहीं खाता था, आज सारा काम स्वयं करता हूँ माँ। छोटी-छोटी परेशानियों के लिए हिकायत करता था, आज बड़े-बड़े मुसीबतों का सामना करता हूँ माँ। जब दर्द मुझे दुनिया से मिलती हैं, तो अकेले बंद कमरे में रो लेता हूँ माँ। वैसे तेरी लोरी बिना नींद नहीं आती मुझे, मगर क्या करूं? सो लेता हूँ माँ। बहुत जल्द मेरी पढ़ाई पूर्ण होगी, उसके बाद तेरे पास आऊंगा माँ मुझे पता है, तू नाराज़ हो होगी मगर मैं तुझे प्यार से समझाऊंगा माँ। तेरे समीप बैठ, मैं तेरे हाथों से खाउँगा माँ उसके बाद तुझे छोड़, कभी मैं शहर नहीं जाउँगा माँ ©नीरज यादव ( मोतीहारी, बिहार)