Neha

 *माँ वो बचपन याद आती है*


माँ वो बचपन याद आती है,

जब मैं धूल-मिट्टी से खेलती थी।

मेरे कपड़े गंदे हो जाते थे,

फिर भी,तू मुझे गोद में उठाती थी।


माँ वो बचपन याद आती है,

जब बरसात में मौज़-मस्ती करती थी।

अपनी सहेलियों के साथ घूमती थी,

और थक -हार,फिर तेरे गोद में सो जाती थी।


माँ वो बचपन याद आती है,

जब तू मूझे गुड़ियाँ रानी बुलाती थी।

स्कूल जाते वक्त्त मुझे तू,

अपने हाथों से खिलाती थी।


माँ वो बचपन याद आती है,

जब पापा के कंधों पर घूमती थी ।

उनके लाये हुए खिलौनों से ,

ख़ूब खेलती और झूमती थी।


माँ वो बचपन याद आती है,

जब तूने मुझे सही बोल सिखाई थी ।

और इस दुनिया का असली रूप,

तूने ही मुझे दिखाई थी।


*©नेहा कुमारी (नयकाटोला, भोपतपुर, मोतिहारी: बिहार)*

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